करेला के अद्भुत फायदे
कड़वे स्वादवाले हरे रंग का करेला एक बेल है। पर करेला के फायदे अनेक है , जिसके फलो की कई तरह की सब्जिया बनाती है। कड़वे स्वाद के चलते इस मशहूर भारतीय शाक को ज्यादातर लोग नापसंद करते है। लेकिंन , अपने पौष्टिक और औषधियों गुणों के कारण यह दवा के रूप में भी काफी लोकप्रिय है। इसके फल का तरकारी के रूप में , पत्रशाक अथवा पत्रस्वरस का चिकित्सा में इस्तेमाल होता है।
करेले का नाम सुनते ही कड़वेपन का ख्याल आ जाता है। हालांकि करेला अपने गुणों लिए कम और अपने कड़वे स्वाद के के कारण ज्यादा मशहूर हो रहा है। दरअसल , जब से इंसान डायबिटीज और हाई ब्लूडप्रेशर जैसी lifestyle वाली बीमारियों के चंगुल में फसा है , तबसे करेले को उसके कड़वे स्वाद के बावजूद प्रसिद्धि मिल गई है। करेले के विशिष्ट गुणों की बदोलत उसके औषधियों उपयोग के अलावा सब्जी के भी इसका अच्छा खासा उपयोग होता है। करेले के सब्जी बनाने की १५ -१६ विधिया प्रचलित है।
मूल अफ्रीका और चीन
करेले का वानस्पतिक नाम ' momordica charantia ' है। इसका जन्म अफ्रीका और चीन माने जाते है। यही से कार्ल दुनिया के दूसरे हिस्सो में पंहुचा। भारत में किस जंगली प्रजातियां आज भी देखी जाती है। करेला विभिन्न आकार -प्रकार में पाया जाता है। इसकी चायनीज वेरायटी 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी होती है। वहाँ पैदा होनेवाला करेला हरे के उप्पर हल्का पिला रंग लिए होता है। जो किनारो की और मुड़ा हुआ नुकीला और खुरदुरा होता है। इसका रंग हरे के साथ सफ़ेद भी देखा गया है। वहां इसकी कई किस्मे है और फलो की आकृति के अनुसार कड़वाहट में भी काफी अंतर है।
लता जाती का पौधा
आमतौर पर मार्च के अंत और अप्रैल के शुरू में उत्तर भारत के सब्जी मंडियों में दिखवाला कराल लाता जाती का स्वयंजात और कृषिजन्य वनस्पति है। इसे करवेल्लक , करवेल्लिका , कारेल , करेली , और कांरेल जैसे नामो से भी जाना जाता है।
शरीर में लगातार विभिन्न प्रकार की बीमारियों के वाहक वायरस और बैक्टरिया के हमले को झेलता है। ये हमले तभी नाकाम हो सकते है , जब शरीर अंदर से मजबूत हो। करले में मौजूद पौष्टिक तत्व , खनिज और विटामिन्स शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है , जिससे इंसान कैंसर जैसे नाइलाज बीमारी का भी मुकाबला कर सकता है।
डायबिटीज में लाभदायक :
डायबिटीज मे करेला असरदायक दावा का काम करता है। करेले के टुकड़ो को छाया में सुखाकर उसका पावडर सुबह खली पेट लेने से लाभ होता है।
करेले में मौजूद बिटर्स एल्केलाइड तत्व खून को साफ करते है। रोजाना सुबह शाम आधा चम्मस रस बराबर मात्रा में शहद के साथ लेने से या करेले के बने लेप को रत को सोते समय लगाने से फोड़े फुंसी और त्वचा रोग नहीं होते है। दाद , खाज , खुजली , सियोरोसिस जैसे त्वचा रोगों में करले के रस में निम्बू का रस मिलाकर पिने से फायदा होता है। अगर त्वच रोग है।, तो करेले का रास कुछ दिनों तक पीना लाभ दायक होता है।
पाचनशक्ति बढ़ाए : करेला शरीर में वायु को बढाकर पाचन क्रिया को तेज करता है। पाचनशक्ति बढ़ने से भूक बढाती है। करेला ठंडा है , इसलिए गर्मी से पैदा होनेवाली बिरामरियो के लिए फायदेमंद है। किसी भी प्रकार से करेले का नित्य सेवन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है। करेला खुद भी जल्दी पचता है।
करेला जोड़ो के दर्द में रामबाण इलाज माना जाता है। गठिया या जोड़ो के दर्द में करले की सब्जी खाने से दर्द वाली जगह करेले के पत्तो के रस से मालिश करने से आराम मिलता है। करेले तथा तील के तेल को बराबर मात्रा में लेकर प्रयोग करने से वात रोगी को आराम मिलता है। इस तेल की मालिश करने से गठिया तथा वात के रोगों से लाभ पहुचता है।
कड़वे स्वादवाले हरे रंग का करेला एक बेल है। पर करेला के फायदे अनेक है , जिसके फलो की कई तरह की सब्जिया बनाती है। कड़वे स्वाद के चलते इस मशहूर भारतीय शाक को ज्यादातर लोग नापसंद करते है। लेकिंन , अपने पौष्टिक और औषधियों गुणों के कारण यह दवा के रूप में भी काफी लोकप्रिय है। इसके फल का तरकारी के रूप में , पत्रशाक अथवा पत्रस्वरस का चिकित्सा में इस्तेमाल होता है।
करेले का नाम सुनते ही कड़वेपन का ख्याल आ जाता है। हालांकि करेला अपने गुणों लिए कम और अपने कड़वे स्वाद के के कारण ज्यादा मशहूर हो रहा है। दरअसल , जब से इंसान डायबिटीज और हाई ब्लूडप्रेशर जैसी lifestyle वाली बीमारियों के चंगुल में फसा है , तबसे करेले को उसके कड़वे स्वाद के बावजूद प्रसिद्धि मिल गई है। करेले के विशिष्ट गुणों की बदोलत उसके औषधियों उपयोग के अलावा सब्जी के भी इसका अच्छा खासा उपयोग होता है। करेले के सब्जी बनाने की १५ -१६ विधिया प्रचलित है।
मूल अफ्रीका और चीन
करेले का वानस्पतिक नाम ' momordica charantia ' है। इसका जन्म अफ्रीका और चीन माने जाते है। यही से कार्ल दुनिया के दूसरे हिस्सो में पंहुचा। भारत में किस जंगली प्रजातियां आज भी देखी जाती है। करेला विभिन्न आकार -प्रकार में पाया जाता है। इसकी चायनीज वेरायटी 20 से 30 सेंटीमीटर लंबी होती है। वहाँ पैदा होनेवाला करेला हरे के उप्पर हल्का पिला रंग लिए होता है। जो किनारो की और मुड़ा हुआ नुकीला और खुरदुरा होता है। इसका रंग हरे के साथ सफ़ेद भी देखा गया है। वहां इसकी कई किस्मे है और फलो की आकृति के अनुसार कड़वाहट में भी काफी अंतर है।
लता जाती का पौधा
आमतौर पर मार्च के अंत और अप्रैल के शुरू में उत्तर भारत के सब्जी मंडियों में दिखवाला कराल लाता जाती का स्वयंजात और कृषिजन्य वनस्पति है। इसे करवेल्लक , करवेल्लिका , कारेल , करेली , और कांरेल जैसे नामो से भी जाना जाता है।
करेले की न्यूट्रिशन वैल्यू :
करेला बेशक खाने में कड़वा हो , लेकिन इसके गन बेहद मीठे है। इसका इस्तेमाल रुचिकर ई पथ्य शाक के रूप में बहुत होता है। चिकित्सा में लाता या पत्र का सरस्व का उपयोग दीपन , भेदन , कफ -पित्त -नाश , ज्वर , कृमि , वातरक्त और आमवात में हितकर मन जाता है। करेले में प्रचुर मात्रा में विटामिन A , B और C पाए जाते है। विटामिन A इसमें दूसरे विटामिन से ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। इसमें फॉस्फोरस तथा कम मात्रा में विटामिन c पाया जाता है। इसके अलावा कैरोटीन , बीटाकेरोटन ,लुटिन , आयरन , ज़िंक, ,पोटैशियम ,मैग्नीशियम और मैगनीज़ जैसे फ्लेवोनॉइड भी पाए जाते है। करेला का सेवन कई रूपो में किया जा सकता है। इसका जूस बनाकर पी सकते है सकते , अचार बना है या फिर इसका इस्तेमाल सब्जी के रूप में किया जा सकता है।करेला के गुण :
करेला एक ऐसी सब्जी है जो काफी सारी बीमारियों को दूर रखने में कारगर साबित होती है। मनुष्य के लिए करेला परम हितकारी और औषधियों गुणों का भंडार है। भूक को बढाकर करेला हमारी पाचनशक्ति को सुधारता है। पचने में करेला हल्का होता है। गर्मी से उत्पन्न विकारो पर शीतल होने के कारण यह शीघ्र लाभ करता है। मजेदार बात यह है की जो लोग करेले की सब्जी नहीं कहते है , वे भी करले के औषधियों गुणों के चलते कद्रदान। जगहों पर करले में के कई तरह के स्वाद विकसित कर लिए गए है। करेले की कड़वाहट को दूर करने के लिए उसे चीरकर उसमे नमक भरकर कुछ घंटो तक रखने का चलन है। बाद में धो कर इसकी सब्जी बनाई जाती है।ऐसा करने से कड़वाहट दूर हो जाती है।शरीर में लगातार विभिन्न प्रकार की बीमारियों के वाहक वायरस और बैक्टरिया के हमले को झेलता है। ये हमले तभी नाकाम हो सकते है , जब शरीर अंदर से मजबूत हो। करले में मौजूद पौष्टिक तत्व , खनिज और विटामिन्स शरीर की रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है , जिससे इंसान कैंसर जैसे नाइलाज बीमारी का भी मुकाबला कर सकता है।
डायबिटीज में लाभदायक :
डायबिटीज मे करेला असरदायक दावा का काम करता है। करेले के टुकड़ो को छाया में सुखाकर उसका पावडर सुबह खली पेट लेने से लाभ होता है।
त्वचा रोग में लाभकारी :
करेले में मौजूद बिटर्स एल्केलाइड तत्व खून को साफ करते है। रोजाना सुबह शाम आधा चम्मस रस बराबर मात्रा में शहद के साथ लेने से या करेले के बने लेप को रत को सोते समय लगाने से फोड़े फुंसी और त्वचा रोग नहीं होते है। दाद , खाज , खुजली , सियोरोसिस जैसे त्वचा रोगों में करले के रस में निम्बू का रस मिलाकर पिने से फायदा होता है। अगर त्वच रोग है।, तो करेले का रास कुछ दिनों तक पीना लाभ दायक होता है।
पाचनशक्ति बढ़ाए : करेला शरीर में वायु को बढाकर पाचन क्रिया को तेज करता है। पाचनशक्ति बढ़ने से भूक बढाती है। करेला ठंडा है , इसलिए गर्मी से पैदा होनेवाली बिरामरियो के लिए फायदेमंद है। किसी भी प्रकार से करेले का नित्य सेवन करने से पाचनशक्ति मजबूत होती है। करेला खुद भी जल्दी पचता है।
Nice Blog lehsan ke nuksan or fayde
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