22 March 2017

सोइचिरो हौंडा की सफलता की बेजोड़ कहानी

सोइचिरो हौंडा की सफलता की बेजोड़ कहानी 

soichiro honda success story in Hindi


वह 30 का दशक था दुनिया के अधिसंख्य देशो की तरह जापान भी विश्वव्यापी मंदी के दौर से गुजर रहा था।  उन्ही दिनों स्कूल में पढ़ने वाले एक किशोर ने एक छोटी सी वर्कशॉप बनाई थी।  जहा वह पिस्टन रिंग के concept पर काम कर रहा था। 


उसका विचार था कि वह जापान में  नई नई खुली एक ऑटोमोबाइल कंपनी को यह concept बेचकर काफी पैसा कमा सकता है। पिस्टन रिंग डेवलप करने के लिए वह रात दिन जुटा रहता था और कई बार तो घर लौटने की जगह अपनी वर्कशॉप में ही सो जाता था। इस  Idea पर काम करने के दौरान ही उसकी शादी हो गई और उसने पूंजी जुटाने के लिए अपने पत्नी के गहनों बहनों तक को गिरवी रख दिया। आखिरकार वो दिन भी आया जब उसने पिस्टन रिंग तैयार कर ली और वह उस ऑटोमोबाइल कंपनी में इसका सैंपल लेकर पहुंचा लेकिन उसे यह जानकर बहुत धक्का लगा कि उसकी  उनके मानकों पर खरी नहीं उतरती है वह मायूस होकर घर लौट आया अब उसके पास एक धुंधली सी उम्मीद के सिवा कुछ भी नहीं था।

अपने  ड्रीम प्रोजेक्ट के खारिज कर दिए जाने के बावजूद उसने हार नहीं मानी। असफलता पर शोक मनाने की  जगह वह फिर से उठा और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ चला। दो साल तक पिस्टन रिंग के नमूने को बार-बार सुधारने और बार-बार नकारे जाने के बाद अंततः उसे उस कंपनी के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने में कामयाबी मिल गयी। 

कॉन्ट्रैक्ट हासिल हुआ लेकिन उस ऑटोमोबाइल कंपनी को सप्लाई देने के लिए जापानी युवक को एक फैक्ट्री की जरूरत थी। द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ चुका था और उस दौर  मैं फैक्ट्री खड़ी करने के लिए कच्चा माल मिलना तक दुर्लभ था , इसके बावजूद उसने हार नहीं मानी और एक अनूठी मिक्सर मशीन बना डाली जिससे वह  कम-से-कम लोहे का प्रयोग करके भी फैक्ट्री तैयार हो गई , वह युवक पिस्टन रिंग का उत्पादन करने के लिए बिल्कुल तैयार जापान पर अमेरिकी जहाजों की बमबारी में उसकी फैक्टरी भी ध्वस्त हो गई। 

किसी तरह से उसने दूसरी बार ढांचा खड़ा किया और दूसरी बार भी अमेरिकी जहाज उसको तबाह कर गए उस युवक ने तीसरी बार भी फैक्ट्री खड़ी कर दी, लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध आप इतना फैल चुका था कि इस्पात मिलना असंभव हो गया था ऐसा लग रहा था कि उस युवक के सपने भी फैक्ट्री के साथ मलबे में मिल गए हैं लेकिन अब भी हार मानने को तैयार नहीं था अद्भुत जीवन वाला वह इंसान उस ने अमेरिकी  फौजियों द्वारा फेंके गए पेट्रोल के खाली कनस्तरो को गला कर इस्पात बनाने का ढंग ढूंढ लिया यह कच्चा माल उसके सपनों को पूरा कर सकता था लेकिन अचानक आए एक भूकंप ने उसके फैक्ट्री और मशीनों को फिर से मलबे का ढेर बना दिया।

अब चौथी बार शुरुआत करने के लिए उस युवक ने थोड़ा इंतजार किया की जंग समाप्त हो जाए यह समाप्त भी हुई लेकिन उसके अपने देश जापान को एटमी हमले से तबाह करके इस लड़ाई में जापान की कमर टूट गयी थी। और साथ ही ध्वस्त हो गयी थी अर्थव्यवस्था। अब पिस्टन रिंग तैयार हो भी जाते तो कार खरीदने वाले ग्राहक ही नहीं थे। हकीकतन उन दिनों में पूरा जापान साइकिल पर  चलने लगा था। 

सड़कों पर यह नजारा देखकर उसके दिमाग में एक विचार आया उसने अपनी साइकिल में घास काटने वाली मशीन का नन्हा सा इंजन लगा दिया नाममात्र के पेट्रोल की खपत करने वाला यह इंजिन साईकिल को तेज रफ़्तार देता था। लोगों को यह काफी पसंद भी आया लेकिन अब उस युवक के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह ऐसे वाहनों को बाजार में पेश कर सके।  जिंदगी में कई मुश्किल मोड़ो से गुजर चुके उस युवक के दिमाग में एक में एक विचार आया और उसने जापान के लगभग 1800 दुकानदारों को एक पत्र लिखा की वे जापान को फिर से गतिमान बनाने के लिए  उसकी सहायता करें। उसका विचार इतना स्पष्ट था कि लोग उसकी मदद के लिए आगे आने लगे और अपने  हैसियत छोटी-छोटी रकम भेजने लगे

 आखिरकार उस युवक ने 'सुपर कब' नाम से एक हलकी मोटरसाइकिल पेश की। इसे जापान में तो हाथोहाथ लिया ही गया देश की जर्जर हालत को सुधारने के लिए इसका निर्यात भी किया जाने लगा। कमाल तो यह हुआ की उस इंसान की बनाई मोटर साईकिल 1963 में अमेरिका तक में टॉप सेलिंग two wheeler ब्रांड बन गई। नाकामयाबी और किस्मत थपेड़ो से कभी हर न मानाने वाले उस जापानी इंसान को आज दुनिया सोइशिरो होंडा के नाम से जानती है। और उसकी कंपनी होंडा कारो और two wheeler के संयुक्त रूप से उत्पादन के आधार पर विश्व में नंबर एक automobile कंपनी है। 

दोस्तों आज हमें हर जगह Honda यह नाम देखने मिलता है। सब तरफ Honda की कारे बाइक दिखती है। हम भी होंड कंपनी पे बहोत भरोसा है। अपनी असफलताओ को सपनो पर कभी हावी न होने देने वाले सोइशिरो होंडा का एक वाक्य इस कंपनी के लाखो कर्मचारी को हमेशा आगे बढ़ने का हौसला देता रहता है और वह कथन है - सफलता 99 प्रतिशत असफलता है।


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