राजकुमारी देवी किसान चाची जिन्होंने बदल दिया है महिलाओ का जीवन
दोस्तों इस पुरुष प्रधान समाज में देश में हमेशा महिलाओ को दूसरा दर्जा दिया जाता है। ऐसा हमें बहोत बार देखे मिलता है। ऐसे बहोत काम , बिज़नस , field है जो सिर्फ पुरुषो के लिए बनी है और पुरुष ही कर सकते है ऐसा भ्रम है। पर राजकुमारी देवी जैसी महिलाऐ बार बार ऐसे भ्रम तोड़ते है। और पुरे देश बताती है की महिलाऐ भी किसी काम में पुरुषो से कम नहीं है। एक अकेली राजकुमारी देवी ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिल्हे को बदल के रख दिया और पुरे देश को बदल रही है।
उन्होंने महिलाओ खेती के सहारे आर्थिक सशक्त बनाया। विधवावो का घर फिर से बसवाने कोशिश की , बालविवाह का विरोध किया। और बिहार सहित पुरे देश का नाम रोशन किया। सरकार ने उन्हें ''किसान श्री '' अवार्ड से सम्मानित किया है। वह किसान श्री पुरस्कार पाने वाली पहिली महिला है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नितीश कुमार ने उन्हें सम्मानित भी किया है। तो आइए किसान चाची के बारे में जानते है।
प्रारंभिक जीवन :
राजकुमारी देवी को किसान श्री अवार्ड मिला तब से लोग उन्हें प्यार से किसान चाची भी कहते है। किसान चाची का जन्म एक शिक्षक के परिवार में हुवा था। उस समय जल्द ही शादी कर देते थे इलसिए मैट्रिक पास होते ही उनकी शादी एक किसान परिवार में अवधेश कुमार चौधरी से कर दी गई। शादी के बाद वह अपने परिवार के साथ मुजफ्फरपुर जिल्हे के आनंदपुर गांव में रहने लगी। राजकुमार देवी पहले से एक टीचर बनाना चाहती थी। इसलिए शादी के बाद 1980 में टीचर की ट्रेनिंग भी ली। पर समाज और परिवार का विरोध के वजहसे वह नौकरी नहीं कर पाई।
कैसे की शरुवात :
उस समय उनके गांव आनंदपुर सहित आसपास के तमाम गावो में गांजा और तंबाखू की खेती हुवा करती थी। सब लोग तंबाखू और गांजे के खेती किया करते थे। गांव के सब लोग नशा करते थे और सभी को नशे के अदि हो चुके थे। इस वजह से बहोत से परिवार में झगडे अशांति महिलाओ से मारपीट अत्याचार होता था। यह देख राजकुमारी देवी को बहोत दुःख होता था। और वह कुछ करना चाहती थी। उन्होंने सोचा क्यों न नशे की खेती के बजाए लोग दूसरी खेती करे ?
राजकुमारी देवी खेती को बदलने के बारे में सोचने लगी। खेती को लोग घाटे का सौदा मानते है इसलिए सब नशे की खेती करते थे। उन्होंने सोचा कोई दूसरी खेती किया जाए जिसमे मुनाफा बहोत हो और गांजे की खेती भी बंद हो जाए साथ ही साथ महिलाओ पर होने वाले अत्यचार भी रुक जाए। राजकुमारी देवी ने फलो के खेती के बारे में सोचा पहले '' खुद तकनीके ज्ञान लुंगी और बाद में लोगो को यह खेती करने को प्रोत्साहित करुँगी''। और उन्होंने अपने घर से फलो और सब्जी के खेती करने का फैसला लिया।
उस वक़्त उनके घर की औरते कभी काम करने बाहर नहीं जाया करती थी । ससुर का विरोध भी था। बावजूद किसान चाची ने हार नहीं मानी और अपने काम में जुट गई। अपने घर की खेती में उन्होंने लीची , पपीता ,केले ,आम ,सब्जी की शुरवात कर दी और जल्द ही उन्हें इसमें कामियाबी भी मिल गई।
गांव में पहली बार किसी ने फलो की खेती की शुरुवात तो कर दी पर पुरे गांव को मनाना बहोत ही मुश्किल था। उन्होंने गांव के लोगो को महिलाओ तंबाखू और गांजे के खेती के नुकसान के बारे में बताना शुरू कर दिया और अपने फलो और सब्जी के खेती का मुनाफा बताया। कई लोग उनका मजाक भी उड़ाते थे। और उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा। और वह आसपास के गावो में साइकिल से जा जा कर वहा के महिलाओ खेती का तकनीके ज्ञान देती है। वह हर रोज 30 से 40 किलोमीटर साइकिल चला चला कर सब को अपना अनुभव बताने लगी और उन्ह भी यह खेती करने के लिए प्रोताहित करने लगी। लोग उन्हें साईकिल चाची भी कहते है।
उस समय महिलाए खेती में सिर्फ मजदूर के लिए ही किया जाया करती थी। किसान चाची ने महिलाओ को खेती करने और खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। और उनका यह काम 20 साल से शुरू है। किसान चाची 25 -30 तरह तरह प्रकार के आचार और मुरब्बा भी बनाती है। और 5 10 रूपये में बिकने वाला आचार आज हजारो में बिकने लगा है।
किसान चाची ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अधिक से अधिक महिलाओ वह जोड़ने लगी। किसान चाची उन्ही हर प्रकार का प्रशिक्षण लिए प्रोत्साहत करती। उन्हें हर प्रकार की मदत करती। सब महिलाओ को एकजुट किया और स्वयंसहायतां ग्रुप बनाया ताकी स्वयं सहायता से खेती को बढ़ावा मिले। स्वर्ण जयंती ग्राम योजना तहत लोन भी मिल गया। और उनके ग्रुप को बढ़ावा मिलने लगा। धीरे धीरे उनके साथ लोग जुड़ने लगे।
कोई मेले या शिबिर गांव में वह अपने उत्पाद अचार, मुरब्बा के स्टाल लगाती है और सब लोगो को वह प्रोत्सहित करती है । किसान चची के मेहनत रंग लाने लगी। यहाँ से किसान चाची को सब लोग जानने लगे और उनकी तकनीक को धीरे धीरे अपनाने लगे, कुछ ही दिनों में आस पास के गांव किसान चाची के तकनीक का इस्तेमाल करने लगे। और पुरे बिहार और भारत में वह किसान चाची के नाम से मशहूर हो गई।
राजकुमारी देवी हमेशा कोशिश करती है की जो भी खेती की जाए उसमे कम से कम किटकनाश का इस्तेमाल किया जाए। वह सिर्फ जैविक खातो का ही इस्तेमाल करती है और उसे ही बढ़ावा देती है। किसान चाची का कहना है की कीटनाशक का इस्तेमाल कर के उत्पाद तो बढ़ाया जा सकता है पर जो उत्पाद हम खायेगे उसका असर हमारे स्वास्थ पर ही होगा। इसलिए सिर्फ जैविक खाद के तकनीक से ही किसान चाची अधिक से अधिक उत्पाद लेती है।
उपलब्धिया :
आज किसान चाची की खुद की मेहनत और लगन पुरे महिलाओ का जीवन बदल दिया है उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है और खेती में नयी तकनीक लायी जिसने समाज गांव और पुरे देश के लोगो को एक प्रेरणा दी है। महिलाएं कुछ भी कर सकती है वह परुषों से जरा भी कम नहीं है।
किसान चाची के लगन को देख कर उन्हें उन्हें बहोत सम्मान और पुरस्कार मिल रहे है। उन्हें '' किसान श्री '' अवार्ड से भी नवाजा गया है। और वह यह सम्मान पाने वाली पहली महिला है। और पुरे देश को राजकुमारी देवी पर गर्व है।
राजकुमारी देवी का सपना है की देश की हर महिला स्वावलंबी बने। वह दुसरो पर निर्भर ना रहे। समाज में अपनी पहचान बनाए। और महिलाओ के प्रती समाज और देश की सोच बदले। बच्चियों और महिलाओ को पढ़ने का मौका मिले।
दोस्तों इस पुरुष प्रधान समाज में देश में हमेशा महिलाओ को दूसरा दर्जा दिया जाता है। ऐसा हमें बहोत बार देखे मिलता है। ऐसे बहोत काम , बिज़नस , field है जो सिर्फ पुरुषो के लिए बनी है और पुरुष ही कर सकते है ऐसा भ्रम है। पर राजकुमारी देवी जैसी महिलाऐ बार बार ऐसे भ्रम तोड़ते है। और पुरे देश बताती है की महिलाऐ भी किसी काम में पुरुषो से कम नहीं है। एक अकेली राजकुमारी देवी ने बिहार के मुजफ्फरपुर जिल्हे को बदल के रख दिया और पुरे देश को बदल रही है।
उन्होंने महिलाओ खेती के सहारे आर्थिक सशक्त बनाया। विधवावो का घर फिर से बसवाने कोशिश की , बालविवाह का विरोध किया। और बिहार सहित पुरे देश का नाम रोशन किया। सरकार ने उन्हें ''किसान श्री '' अवार्ड से सम्मानित किया है। वह किसान श्री पुरस्कार पाने वाली पहिली महिला है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नितीश कुमार ने उन्हें सम्मानित भी किया है। तो आइए किसान चाची के बारे में जानते है।
प्रारंभिक जीवन :
राजकुमारी देवी को किसान श्री अवार्ड मिला तब से लोग उन्हें प्यार से किसान चाची भी कहते है। किसान चाची का जन्म एक शिक्षक के परिवार में हुवा था। उस समय जल्द ही शादी कर देते थे इलसिए मैट्रिक पास होते ही उनकी शादी एक किसान परिवार में अवधेश कुमार चौधरी से कर दी गई। शादी के बाद वह अपने परिवार के साथ मुजफ्फरपुर जिल्हे के आनंदपुर गांव में रहने लगी। राजकुमार देवी पहले से एक टीचर बनाना चाहती थी। इसलिए शादी के बाद 1980 में टीचर की ट्रेनिंग भी ली। पर समाज और परिवार का विरोध के वजहसे वह नौकरी नहीं कर पाई।
कैसे की शरुवात :
उस समय उनके गांव आनंदपुर सहित आसपास के तमाम गावो में गांजा और तंबाखू की खेती हुवा करती थी। सब लोग तंबाखू और गांजे के खेती किया करते थे। गांव के सब लोग नशा करते थे और सभी को नशे के अदि हो चुके थे। इस वजह से बहोत से परिवार में झगडे अशांति महिलाओ से मारपीट अत्याचार होता था। यह देख राजकुमारी देवी को बहोत दुःख होता था। और वह कुछ करना चाहती थी। उन्होंने सोचा क्यों न नशे की खेती के बजाए लोग दूसरी खेती करे ?
राजकुमारी देवी खेती को बदलने के बारे में सोचने लगी। खेती को लोग घाटे का सौदा मानते है इसलिए सब नशे की खेती करते थे। उन्होंने सोचा कोई दूसरी खेती किया जाए जिसमे मुनाफा बहोत हो और गांजे की खेती भी बंद हो जाए साथ ही साथ महिलाओ पर होने वाले अत्यचार भी रुक जाए। राजकुमारी देवी ने फलो के खेती के बारे में सोचा पहले '' खुद तकनीके ज्ञान लुंगी और बाद में लोगो को यह खेती करने को प्रोत्साहित करुँगी''। और उन्होंने अपने घर से फलो और सब्जी के खेती करने का फैसला लिया।
उस वक़्त उनके घर की औरते कभी काम करने बाहर नहीं जाया करती थी । ससुर का विरोध भी था। बावजूद किसान चाची ने हार नहीं मानी और अपने काम में जुट गई। अपने घर की खेती में उन्होंने लीची , पपीता ,केले ,आम ,सब्जी की शुरवात कर दी और जल्द ही उन्हें इसमें कामियाबी भी मिल गई।
गांव में पहली बार किसी ने फलो की खेती की शुरुवात तो कर दी पर पुरे गांव को मनाना बहोत ही मुश्किल था। उन्होंने गांव के लोगो को महिलाओ तंबाखू और गांजे के खेती के नुकसान के बारे में बताना शुरू कर दिया और अपने फलो और सब्जी के खेती का मुनाफा बताया। कई लोग उनका मजाक भी उड़ाते थे। और उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा। और वह आसपास के गावो में साइकिल से जा जा कर वहा के महिलाओ खेती का तकनीके ज्ञान देती है। वह हर रोज 30 से 40 किलोमीटर साइकिल चला चला कर सब को अपना अनुभव बताने लगी और उन्ह भी यह खेती करने के लिए प्रोताहित करने लगी। लोग उन्हें साईकिल चाची भी कहते है।
उस समय महिलाए खेती में सिर्फ मजदूर के लिए ही किया जाया करती थी। किसान चाची ने महिलाओ को खेती करने और खेती का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। और उनका यह काम 20 साल से शुरू है। किसान चाची 25 -30 तरह तरह प्रकार के आचार और मुरब्बा भी बनाती है। और 5 10 रूपये में बिकने वाला आचार आज हजारो में बिकने लगा है।
किसान चाची ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और अधिक से अधिक महिलाओ वह जोड़ने लगी। किसान चाची उन्ही हर प्रकार का प्रशिक्षण लिए प्रोत्साहत करती। उन्हें हर प्रकार की मदत करती। सब महिलाओ को एकजुट किया और स्वयंसहायतां ग्रुप बनाया ताकी स्वयं सहायता से खेती को बढ़ावा मिले। स्वर्ण जयंती ग्राम योजना तहत लोन भी मिल गया। और उनके ग्रुप को बढ़ावा मिलने लगा। धीरे धीरे उनके साथ लोग जुड़ने लगे।
कोई मेले या शिबिर गांव में वह अपने उत्पाद अचार, मुरब्बा के स्टाल लगाती है और सब लोगो को वह प्रोत्सहित करती है । किसान चची के मेहनत रंग लाने लगी। यहाँ से किसान चाची को सब लोग जानने लगे और उनकी तकनीक को धीरे धीरे अपनाने लगे, कुछ ही दिनों में आस पास के गांव किसान चाची के तकनीक का इस्तेमाल करने लगे। और पुरे बिहार और भारत में वह किसान चाची के नाम से मशहूर हो गई।
राजकुमारी देवी हमेशा कोशिश करती है की जो भी खेती की जाए उसमे कम से कम किटकनाश का इस्तेमाल किया जाए। वह सिर्फ जैविक खातो का ही इस्तेमाल करती है और उसे ही बढ़ावा देती है। किसान चाची का कहना है की कीटनाशक का इस्तेमाल कर के उत्पाद तो बढ़ाया जा सकता है पर जो उत्पाद हम खायेगे उसका असर हमारे स्वास्थ पर ही होगा। इसलिए सिर्फ जैविक खाद के तकनीक से ही किसान चाची अधिक से अधिक उत्पाद लेती है।
उपलब्धिया :
आज किसान चाची की खुद की मेहनत और लगन पुरे महिलाओ का जीवन बदल दिया है उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है और खेती में नयी तकनीक लायी जिसने समाज गांव और पुरे देश के लोगो को एक प्रेरणा दी है। महिलाएं कुछ भी कर सकती है वह परुषों से जरा भी कम नहीं है।
किसान चाची के लगन को देख कर उन्हें उन्हें बहोत सम्मान और पुरस्कार मिल रहे है। उन्हें '' किसान श्री '' अवार्ड से भी नवाजा गया है। और वह यह सम्मान पाने वाली पहली महिला है। और पुरे देश को राजकुमारी देवी पर गर्व है।
राजकुमारी देवी का सपना है की देश की हर महिला स्वावलंबी बने। वह दुसरो पर निर्भर ना रहे। समाज में अपनी पहचान बनाए। और महिलाओ के प्रती समाज और देश की सोच बदले। बच्चियों और महिलाओ को पढ़ने का मौका मिले।
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