11 October 2016

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। 




दोस्तों विजयादशमी यानी जीत का उत्सव, आज बुराई पर अच्छाई की जित हुई थी।  आज के दिन ही श्रीरामजी ने रावण का वध किया था। और इसलिए हम हर साल रावण का पुतला बनाकर उसका दहन करते है।  पर आज के युग में हमें उस रावण को नहीं जलाना चाहिए बल्कि हमे अपने भीतर के रावण का दहन करना चाहिए तो यह आज के वक़्त में सही विजयादशमी होगी। 
सही मायने में जीत  के लिए अंतर्मन के शत्रु क्रोध ,मान ,माया ,लोभ,को हमें परास्त करणा होगा - क्रोध को क्षमा से , मान  मृदृता से , माया को ऋतुजा से , और लोभ को संतोष से जीता जा सकता है और हमारे भीतर के रावण का दहन किया जा सकता है। 
 आज हर तरह का रावण हमारे भीतर मौजूद है और हमें इस विजयादशमी पर इन सभी रावणो को पराजीत कर के इनका दहन करना है।  और विजयी होना है। 

अज्ञान का रावण :
अज्ञान ही बुराई और गरीबी की वजह है।  एक अज्ञानी व्यक्ति को ही कोई अपना गुलाम बनाकर जैसा चाहे वैसा used कर सकता है।  आज इसका सबसे बड़ा example आतंगवाद देखने मिलता है।  जिसे कुछ ज्ञान न हो जो कुछ पढ़ा लिखा न हो , जो अंजान हो उसे कोई भी अपने हित के लिए उपयोग कर सकता है। बिना पढ़लिख कर हम अपना और अपने देश को कभी आगे नहीं बढ़ा सकते  So हमें अपने भीतर के और देश में फैले हुए अज्ञानरूपी रावण को ज्ञान और शिक्षा से परास्त करना होगा। 

बुरी आदते और  वृत्तीयो  का रावण  :
हमें आज के दिन कम से कम एक बुरी आदत को  त्याग देना चाहिए।  कोई भी इन्सान चाहे वो कितना भी अच्छा क्यों न हो उसमे बुरी आदते रहती ही है।  हमें आज अपनी बुरी आदतों को छोडना और उसे एक अच्छी आदतों में बदलना चाहिए। महर्षि पतंजली ने कहा है की प्रमाण , विपर्यय ,विकल्प ,निंदा और स्मृति पांच  वृत्तीया है।  और सच्चा साधक वही है वो यह वृत्तीयो  को जीतता है। हमारे आत्मविकास के लिए वृत्तीयो का निरोध जरूरी है। हमें अपने विकास के लिए बुरी आदते और इन वृत्तीयो  का दहन करना होगा। 

द्वेश और कपट का रावण : 
गौतम बुद्ध के प्रिय शिक्ष एक बार चर्चा करते हुए पूछा की भगवान यह संसार कैसा विचित्र है।  यहाँ के लीग एक दूसरे से घृणा करते है भाई भाई से नफरत करता है।  परिवार वाले एक दूसरे से घृणा करते है। सब कुछ नश्वर है फिर भी भेद मानो सत्य है। ऐसा क्यों भगवान , भगवान बुद्ध कहते है , यह संसार के लोग विचित्र है यह बाहर ही देखते है।  बाहर के अंधकार से तो डरते है और प्रकाश की उम्मीद करते है।  किन्तु इनके अंदर गहन अंधकार है।  जरुरत है '' अप्प दीपो भाव : " अपना आप को प्रकाशीत करने की और तामस को दूर करने की। 

क्रोध ,लोभ का रावण :
 क्रोध और लोभ आप का सबसे बड़ा शत्रु है।  यह आप का सर्वनाश कर सकता है। आप का शत्रु आप के भीतर ही है। सूर्पनखा  को देख रावण क्रोधित हो माता सीता का अपहरण कर  अपने और अपने कुल का घातक बना। 
क्रोध और घृणा को प्रेम से जीतो। कबीर भी कहते है ढाई आखर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय। स्वामी विवेकानद ने भी कहा है की प्रेम की चादर को इतना  बढ़ा दो की कोई पराया न रहने पाए। हमें अपने भीतर  के क्रोध और लोभ के रावण का दहन प्रेम से करना होगा। 

दोस्तों विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

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