15 October 2016

मेरे शिक्षक के लिए एक सबक - apj abdul kalam

मेरे शिक्षक के लिए एक सबक - एपीजे अब्दुल कलाम 




दोस्तों आज 15 ऑक्टोबर एपीजे अब्दुल कलाम सर का जन्मदिन है।  Happy  Birthday sir, आज वह हमारे बिच नहीं है पर हमें उनके विचार उनके कार्य उनका जीवन से हमें आज भी बहोत कुछ सिखने मिलते है ! दोस्तों आज मैं आप के साथ कलाम के बचपन की एक story बताने जा रहा हु। आशा करता हु की आप को यह जरूर पसंद आएगी। 

जब कलम सर छोटे थे। वह रामेश्वरम में एक मस्जिद के रास्ते पर रहते थे। रामेश्वरम  शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। हमेशा के तरह वह शाम को मस्जिद से शाम को घर लौट रहे थे , तभी रास्ते में एक मंदिर लगा हमेशा की तरह यह उन्हें अंजान सा लगा। मंदिर आने जाने वाले  लोग उन्हें  घूरने लगे , और कुछ लोग उन्हें आश्चर्य से देखने लगे ''क्या  एक मुस्लिम लड़का यह मंदिर के पास क्या कर रहा है ? '' 

कलाम सर कहते है - पर सच तो यह है  की मंदिर में के वह तालबद्ध और मन को छूने वाले स्वर मुझे बहोत पंसद थे। ये अलग बात है की वह मंत्र मुझे समझ नहीं आते थे। पर वह मंत्र और वह की धुन में एक आकर्षण था ।  मुझे वह मंदिर मेरे बेस्ट फ्रेंड रामानंद सहस्त्रे ने बताया था ।  रामा के पिता वहा के मुख्य पुजारी थे। मैं रामा के साथ जाता और वहा देखता रहता रामा अपने पिता से साथ भजन करने बैठता और बिच बिच में मुझे देख कर हँसता रहता। स्कूल में भी हम साथ में ही पहले बेंच पर बैठते थे।वह मुख्य पुजारी का बेटा और मैं एक मुस्लिम होने के बावजूद हम   भाई- भाई के जैसे ही रहते थे। 

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एक दिन की बात है जब हम 5th क्लास में थे। एक नए शिक्षक हमें पढाने आए वह बहोत ही कठोर दिख रहे थे।  अपने हाथो में छड़ी को पकड़ थे हुए वह पुरे क्लास में घूमने लगे और हमारे सामने आ कर खड़े हो गए। 
और कहने लगे '' तुम सफ़ेद टोपी वाले तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ के मुख्य पुजारी के बेटे के साथ बैठने की ? उठो और सबसे पीछे की बेंच में जाकर  बैठ जाओ।'' मुझे बहोत दुःख हुए मेरे आँखों में से आँसू बहने लगे फ़ौरन मैंने मेरे किताबे उठाई और लास्ट बेंच पर जा कर बैठ गया। 

स्कूल की  छुट्टी के बाद  रामा और मैं बिना कुछ बाते किए रास्ते से जा रहे थे।  हमे ऐसा लगा की अब हम एक दूसरे के दोस्त नहीं रहेगे। जब मैं घर पंहुचा मेरे पापा ने मुझे रोता हुआ देखा और कहा की ''अब्दुल तुम क्यों रो रहे हो, तुम्हें क्या हुआ ? '' मैंने पापा को सब कुछ बता दिया। और रामा ने भी अपने पिता को सब कुछ बता दिया। 

दूसरी दिन सुबह सुबह रामा मेरे घर आया और कहा की मेरे पिता ने तुम्हे जल्द घर बुलाया है। मैं घबरा गया मुझे लगा की मुझपर कोई मुसीबत आने वाली है। मैं जल्द है रामा के साथ उसके घर गया। रामा के घर जाते ही मेरी धड़कने और बढ़ गयी क्यों की नए शिक्षक भी वही थे। लेकिन मुझे तब आश्चर्य हुआ जब रामा के पिता जो की मंदिर के मुख्य पुजारी थे उन्होंने शिक्षक को मुझसे माफ़ी मागने को कहा। 


रामा के पिता शिक्षक से कहते है की  भगवन की नजरोमें कोई भी बच्चा एक दूसरे से कम नहीं और  पराया नहीं  एक शिक्षक के नाते यह आप का कर्तव्य है की सभी बच्चे सामंज्यस और एकता से रहना सिखाए चाहे फिर वह कोई भी धर्म के क्यों न हो।  तुम बच्चो को शिक्षा देने के काबिल नहीं हो। 

वह शिक्षक तुरंत ही कलाम को गले लगता है और उससे माफ़ी मांगता है। और कहता है की जीवन का बहोत बड़ा सबक मुझे आज सिखने मिल रहा है। और दूसरे दिन से रामा और मैं फिर से फर्स्ट बेंच पर बैठने लगे और हम हमेशा बेस्ट फ्रेंड रहे।


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