mahatma gautam buddha history in hindi
दोस्तों भगवान गौतम बुध्द की life story के बारे में जानने वाले है। सिद्धार्थ का जन्म एक बहोत बड़े घराने में हुआ था। उनके पिता शाक्य गन के मुखिया थे। उनका जन्म लुंबिनी नेपाल में हुआ था। जन्म से ही सिद्धार्थ के शरीर पर निशान था। जन्म के ७ बाद ही उनकी माँ महामाया का देहात हो गया। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया , माँ गौतमी के द्वारा पाले जाने से उन्ही गौतम कहा जाने लगा।
सिद्धार्थ के जन्म समारोह में ही एक महान साधु ने यही घोषणा की थे की यह एक महान मनुष्य बनेगा। संसार के दुखो का उसे ज्ञान होगा और राजपाठ छोड़के वह ज्ञान की तलाश में चला जायेगा। उसका नाम सिद्धार्थ रख गया जिसका अर्थ है की जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो बचपन से ही सिद्धार्थ बहोत कोमल और दयावान स्वाभाव के थे। बचपन में सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के द्वारा बाण से घायल हंस को बचाया और अपने भाई से झगड़ा किया और हंस की रक्षा की, मारने वाले से बचने वाला महान होता है।
महाराज को हमेश गौतम की चिंता लगी रहती थी। राजा को लगता था की गौतम को संसार के दुखो की पहचान हो गयी तो वह राजपाठ छोड़ देगा इसलिए उन्होंने सामान्य जीवन से दूर रकने के लिए एक वैभवशाली महल बनाया। जब सिद्धार्थ १६ साल के हुए तब उनका विवाह दंडपाणि की कन्या यशोधरा से हुआ , पिता द्वारा ऋतुवो के अनुरुप बनाए गए वैभवशाली और भोग-विलास यूक्त महल में वो यशोधरा के साथ रहने लगे। यहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। उन्हें महल में किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी।
एक दिन सिद्धार्थ ने महल से बाहर जाने की इच्छा व्यक्त की और महाराज ने उन्हने बाहर जाने की अनुमती दी ,जब सिद्धार्थ कपिलवास्तु की सैर पे निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा :
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को विचलित कर दिया। वो बूढ़ा आदमी जिसके शारीर सुख गया था, दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे , वो रोगी जिसका चेहर पिला पड़ गया था, सासे फूल रही थी ,जो दूसरों के सहारे चल रहा था ,वो अर्थी जिसे चार आदमी अपने कंधे पे उठा कर ले जा रहे थे। सिद्धार्थ ने सोचा धिक्कार है ऐसे जवानी पर जो साथ छोड़ देती है। धिक्कार है ऐसे स्वास्थ पर जो शरीर को नष्ट कर देता है , धिक्कार है ऐसे जीवन पर जो खत्म हो जाता है पर जब सिद्धार्थ ने सन्यासी को देखा जो संसार की सारी भावनावो से मुक्त था और बहोत खुश था उसने सिद्धार्थ को आकर्षित किया। अंत : उनका जीवन वैराग्य की तरफ मूड गया। और वे सबकुछ त्याग ने की इच्छा जाहिर की पर महाराज ने उन्हें साफ मना कर दिया।
एक रात वो अपनी पत्नी और अपने पुत्र को सोता हुए छोड़ कर गृह त्याग कर ज्ञान के खोज में चल पड़े। और वह तपस्या करने लगे। वह भिक्षा मंगाते और तपस्या करते। वह मगध की राजधानी में आलार और उद्रक दो ब्राम्हण से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये और ध्यान लगाना सीखा पर उनको संतोष नहीं मिला। उरवले पहुंचे वाह तरह तरह की तपस्या की पर उन्हें समाधान नहीं हुआ और वह वहा से चल पड़े।
इसके बाद सिद्धार्थ गया (बिहार ) पहुंचे वह एक वटवृक्ष के निचे समाधी लगायी और प्रतिज्ञा की जब तक ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता तब तक यह से नहीं हटुगा। सात दिन और सात राते समाधी में रहने के बाद आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। वैशाख पौर्णिमा को ही हम गुरु पूर्णिमा कहते है और जो लोग बुद्ध को मानते है उनके लिए ये बहोत बड़ा त्यौहार है।
जिस वृक्ष के निचे ज्ञान प्राप्त हुआ उसे ''बोधि वृक्ष '' कहते है। तथा गया को बोध गया कहा जाता है। भगवान बुद्ध ८० उम्र तक सभी नगरों में जा जा कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे और सभी लोगो अपना सन्देश देते रहे। वह संस्कृत की जगह उस वक़्त की सरल भाषा पाली में प्रचार करते रहे।
पाली सिद्धांत के महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार ८० वर्ष की आयु में भगवान बुद्धने घोषण की की वे अब जल्द ही परिनिर्वाण होगे और वे ब्रम्हांड में लीन हो गये। और कहने लगे की मेरा कार्य पूर्ण हो चूका है।शरीर नश्वर है शरीर से प्रेम मत करो। मेरे बताए हुए मार्ग पर चलो और ईश्वर की प्राप्ति करो।
भगवान बुद्ध का निर्वाण समय अब समीप आ गया था उन्होनों अपने शिक्ष को एक सेज सजाने को कहा और उस पर निद्रिस्त हो गए उनके और अपने शिक्ष को कहने लगे यह उनके अंतिम शब्द '' मेरे पुत्रो मै इस संसार में मनावत का पाठ पढ़ाने के लिए आया था। मुझे लोग पूछते है की ईश्वर कहा है ? वह तो हर जगह है सभी प्राणी मात्रा में उसका संचार है। मैंने मानवता के मुक्ति के लिए अपना जीवन अर्पित किया। इसके बाद मै नहीं ऐसा कभी मत समझना मेरा पठण सदैव तुम्ह गुरु स्थान दिखायेगा। जीवन के प्रत्येक क्षणों में कार्यरत रहना। हर बात सत्य से करो धर्म की शुद्धता , भाषा की शुद्धता तथा हर कार्य में सत्यता का प्रमाण दिखना और जो कुछ भी मैंने सिखाया है उसे याद रखना और उस मार्ग पर चलना।
बुद्धा धर्म के बारे में कुछ और जानकरी :
बुद्ध धर्म दुनिया का ३ रा सबसे बड़ा धर्म है।
जो बुद्ध धर्म के अनुयायी है उनके लिए सबसे पवित्र त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा है।
जिस स्थल पर सिद्धार्थ का नामकरण समारोह किया गया था। लुंबिनी के उस स्थल पर महाराज अशोक ने जन्म स्मृती में एक स्तम्भ बनवाया।
सबसे जादा बुद्धा का प्रचार सम्राट अशोक ने ही किया।
भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए १० चीजों पर जोर दिया है
१ ) अहिंसा
२ ) सत्य
३) चोरी न करना
४) किसी भी प्रकार की संपत्ति न रखना
५) शराब का सेवन न करना
६ ) असमय भोजन करना
७) सुखद बिस्तर पर न सोना
८) धन संचय न करना
९) महिलावो से दूर रहना
१० ) भोग -विलास से दूर रहना
सांसारिक दुखो से मुक्ति के लिए भगवान बुद्ध की शिक्षा
सम्यक दुष्टि : सम्यक दुष्टि का अर्थ है की जीवन में सुख- दुःख आते रहेंगे हमें अपने नजरिये को सही रखना चाहिए।
सम्यक संकल्प : जीवन में जो काम करने के योग्य है। जिससे दूसरों का भाला होता है हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए।
सम्यक वचन : मनुष्य को हमेशा अच्छा बोलना चाहिए कभी दूसरों को बुरा या उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।
सम्यक कर्मीत : मनुष्य को दुराचार और भोग -विलास से दूर रहना चाहिए।
सम्यक आजिव : हमेशा अच्छे रास्त से कमाए पैसो पर ही अपना जीवन का उदरनिर्वाह करना चाहिए , गलत अनैतिक या अधार्मिक तरीकों से आजीविका प्राप्त नहीं करना चाहिए।
सम्यक व्यायाम : बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए और अच्छी आदतों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
सम्यक स्मृति : हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए की सांसारिक जीवन क्षणिक और नाशवान है।
सम्यक समाधी : ध्यान ही वह अवस्था है जिसमे मन की अस्थिरता,चंचलता शांत होती है।
पूरा नाम : सिद्धार्थ गौतम
जन्म : ५६३ इ. पु.
पिता : नरेश शुद्धोधन
माता : रानी महामाया
जन्मस्थल : लुम्बिनी नेपाल
शिक्षा : गुरु विश्व्नाथ के पास वेद और उंपनिषद पढ़े
शिक्षा : गुरु विश्व्नाथ के पास वेद और उंपनिषद पढ़े
विवाह : यशोधरा के साथ
पुत्र : राहुल
मृत्यु : ४८३ ई. पु.
दोस्तों भगवान गौतम बुध्द की life story के बारे में जानने वाले है। सिद्धार्थ का जन्म एक बहोत बड़े घराने में हुआ था। उनके पिता शाक्य गन के मुखिया थे। उनका जन्म लुंबिनी नेपाल में हुआ था। जन्म से ही सिद्धार्थ के शरीर पर निशान था। जन्म के ७ बाद ही उनकी माँ महामाया का देहात हो गया। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया , माँ गौतमी के द्वारा पाले जाने से उन्ही गौतम कहा जाने लगा।
सिद्धार्थ के जन्म समारोह में ही एक महान साधु ने यही घोषणा की थे की यह एक महान मनुष्य बनेगा। संसार के दुखो का उसे ज्ञान होगा और राजपाठ छोड़के वह ज्ञान की तलाश में चला जायेगा। उसका नाम सिद्धार्थ रख गया जिसका अर्थ है की जो सिद्धि प्राप्ति के लिए जन्मा हो बचपन से ही सिद्धार्थ बहोत कोमल और दयावान स्वाभाव के थे। बचपन में सिद्धार्थ अपने चचेरे भाई देवदत्त के द्वारा बाण से घायल हंस को बचाया और अपने भाई से झगड़ा किया और हंस की रक्षा की, मारने वाले से बचने वाला महान होता है।
महाराज को हमेश गौतम की चिंता लगी रहती थी। राजा को लगता था की गौतम को संसार के दुखो की पहचान हो गयी तो वह राजपाठ छोड़ देगा इसलिए उन्होंने सामान्य जीवन से दूर रकने के लिए एक वैभवशाली महल बनाया। जब सिद्धार्थ १६ साल के हुए तब उनका विवाह दंडपाणि की कन्या यशोधरा से हुआ , पिता द्वारा ऋतुवो के अनुरुप बनाए गए वैभवशाली और भोग-विलास यूक्त महल में वो यशोधरा के साथ रहने लगे। यहाँ उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ। उन्हें महल में किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी।
एक दिन सिद्धार्थ ने महल से बाहर जाने की इच्छा व्यक्त की और महाराज ने उन्हने बाहर जाने की अनुमती दी ,जब सिद्धार्थ कपिलवास्तु की सैर पे निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा :
१ ) बूढ़ा व्यक्ति
२) बीमार लाचार व्यक्ति
३ ) शव
४) सन्यासी
इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को विचलित कर दिया। वो बूढ़ा आदमी जिसके शारीर सुख गया था, दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे , वो रोगी जिसका चेहर पिला पड़ गया था, सासे फूल रही थी ,जो दूसरों के सहारे चल रहा था ,वो अर्थी जिसे चार आदमी अपने कंधे पे उठा कर ले जा रहे थे। सिद्धार्थ ने सोचा धिक्कार है ऐसे जवानी पर जो साथ छोड़ देती है। धिक्कार है ऐसे स्वास्थ पर जो शरीर को नष्ट कर देता है , धिक्कार है ऐसे जीवन पर जो खत्म हो जाता है पर जब सिद्धार्थ ने सन्यासी को देखा जो संसार की सारी भावनावो से मुक्त था और बहोत खुश था उसने सिद्धार्थ को आकर्षित किया। अंत : उनका जीवन वैराग्य की तरफ मूड गया। और वे सबकुछ त्याग ने की इच्छा जाहिर की पर महाराज ने उन्हें साफ मना कर दिया।
एक रात वो अपनी पत्नी और अपने पुत्र को सोता हुए छोड़ कर गृह त्याग कर ज्ञान के खोज में चल पड़े। और वह तपस्या करने लगे। वह भिक्षा मंगाते और तपस्या करते। वह मगध की राजधानी में आलार और उद्रक दो ब्राम्हण से ज्ञान प्रप्ति का प्रयत्न किये और ध्यान लगाना सीखा पर उनको संतोष नहीं मिला। उरवले पहुंचे वाह तरह तरह की तपस्या की पर उन्हें समाधान नहीं हुआ और वह वहा से चल पड़े।
इसके बाद सिद्धार्थ गया (बिहार ) पहुंचे वह एक वटवृक्ष के निचे समाधी लगायी और प्रतिज्ञा की जब तक ज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता तब तक यह से नहीं हटुगा। सात दिन और सात राते समाधी में रहने के बाद आठवें दिन वैशाख पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई। वैशाख पौर्णिमा को ही हम गुरु पूर्णिमा कहते है और जो लोग बुद्ध को मानते है उनके लिए ये बहोत बड़ा त्यौहार है।
बोधि वृक्ष |
जिस वृक्ष के निचे ज्ञान प्राप्त हुआ उसे ''बोधि वृक्ष '' कहते है। तथा गया को बोध गया कहा जाता है। भगवान बुद्ध ८० उम्र तक सभी नगरों में जा जा कर अपने विचारों को प्रसारित करते रहे और सभी लोगो अपना सन्देश देते रहे। वह संस्कृत की जगह उस वक़्त की सरल भाषा पाली में प्रचार करते रहे।
पाली सिद्धांत के महापरिनिर्वाण सूत्र के अनुसार ८० वर्ष की आयु में भगवान बुद्धने घोषण की की वे अब जल्द ही परिनिर्वाण होगे और वे ब्रम्हांड में लीन हो गये। और कहने लगे की मेरा कार्य पूर्ण हो चूका है।शरीर नश्वर है शरीर से प्रेम मत करो। मेरे बताए हुए मार्ग पर चलो और ईश्वर की प्राप्ति करो।
भगवान बुद्ध का निर्वाण समय अब समीप आ गया था उन्होनों अपने शिक्ष को एक सेज सजाने को कहा और उस पर निद्रिस्त हो गए उनके और अपने शिक्ष को कहने लगे यह उनके अंतिम शब्द '' मेरे पुत्रो मै इस संसार में मनावत का पाठ पढ़ाने के लिए आया था। मुझे लोग पूछते है की ईश्वर कहा है ? वह तो हर जगह है सभी प्राणी मात्रा में उसका संचार है। मैंने मानवता के मुक्ति के लिए अपना जीवन अर्पित किया। इसके बाद मै नहीं ऐसा कभी मत समझना मेरा पठण सदैव तुम्ह गुरु स्थान दिखायेगा। जीवन के प्रत्येक क्षणों में कार्यरत रहना। हर बात सत्य से करो धर्म की शुद्धता , भाषा की शुद्धता तथा हर कार्य में सत्यता का प्रमाण दिखना और जो कुछ भी मैंने सिखाया है उसे याद रखना और उस मार्ग पर चलना।
बुद्ध धर्म दुनिया का ३ रा सबसे बड़ा धर्म है।
जो बुद्ध धर्म के अनुयायी है उनके लिए सबसे पवित्र त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा है।
जिस स्थल पर सिद्धार्थ का नामकरण समारोह किया गया था। लुंबिनी के उस स्थल पर महाराज अशोक ने जन्म स्मृती में एक स्तम्भ बनवाया।
सबसे जादा बुद्धा का प्रचार सम्राट अशोक ने ही किया।
भगवान बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए १० चीजों पर जोर दिया है
१ ) अहिंसा
२ ) सत्य
३) चोरी न करना
४) किसी भी प्रकार की संपत्ति न रखना
५) शराब का सेवन न करना
६ ) असमय भोजन करना
७) सुखद बिस्तर पर न सोना
८) धन संचय न करना
९) महिलावो से दूर रहना
१० ) भोग -विलास से दूर रहना
सांसारिक दुखो से मुक्ति के लिए भगवान बुद्ध की शिक्षा
सम्यक दुष्टि : सम्यक दुष्टि का अर्थ है की जीवन में सुख- दुःख आते रहेंगे हमें अपने नजरिये को सही रखना चाहिए।
सम्यक संकल्प : जीवन में जो काम करने के योग्य है। जिससे दूसरों का भाला होता है हमें उसे करने का संकल्प लेना चाहिए।
सम्यक वचन : मनुष्य को हमेशा अच्छा बोलना चाहिए कभी दूसरों को बुरा या उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए।
सम्यक कर्मीत : मनुष्य को दुराचार और भोग -विलास से दूर रहना चाहिए।
सम्यक आजिव : हमेशा अच्छे रास्त से कमाए पैसो पर ही अपना जीवन का उदरनिर्वाह करना चाहिए , गलत अनैतिक या अधार्मिक तरीकों से आजीविका प्राप्त नहीं करना चाहिए।
सम्यक व्यायाम : बुरी आदतों को छोड़ देना चाहिए और अच्छी आदतों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
सम्यक स्मृति : हमें कभी यह नहीं भूलना चाहिए की सांसारिक जीवन क्षणिक और नाशवान है।
सम्यक समाधी : ध्यान ही वह अवस्था है जिसमे मन की अस्थिरता,चंचलता शांत होती है।
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