4 June 2016

दशरत मांझी रियल स्टोरी इन हिंदी A mountain man Dashrat Manjhi story in Hindi.....

           
A mountain man Dashrat Manjhi in Hindi

दोस्तों आज मै आप को ऐसे  महान शक्स  से परिचित करने वाला हु जो जो इस पूरी दुनिया के लिए जूनून की मिसाल है।  एक ऐसा  व्यकती शायद जिसके बारे में सुन कर आप यकींन ना कर सकेंगे संकल्पना में कितनी शक्ति होती है, हम इस शक्स से सीखना चाहिए।  और किसी भी काम को हम पुरे विश्वास,लगन और मेहनत से करे तो सच में दोस्तों आसमान को भी आप के सामने झुकना होगा।
    
           आप ने Spider Man, Super Man देखा  होगा , ये सब फ़िल्मी है पर ये  Real Hero , Its Real Mountain Man जिसने अकेले के दम पे पूरा पहाड़ हिल कर रख दिया, जिसने अकेले ही पहाड़ को काट  कर रास्ता बना  दिया। दशरत मांझी ने केवल छेनी और हतोड़े लेकर अपने अकेले के  दम पर 360 फुट लम्बी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ को काटकर एक यैसी सड़क बना दी जिससे कई घंटे में पार करने वाले सफर को सिर्फ आधे घंटे में पार किया जाने लगा तो  चलिए इस Mountain Man  से आप को परिचित करता हु।

          दशरत मांझी बिहार के गया जिले  में गलहोत गांव में रहने वाले जो की बहोत ही पिछड़े इलाके से थे।   वहा  न तो बिजली और अन्य सुविधा थी और पानी के लिए भी लोगो को 3 किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था।  ऐसे में छोटी सी छोटी जरूरतों के लिए पहाड़ पार करना होता था और दूसरे गांव से जरूरतों की चीजे  लानी पड़ती थी ।  उन्हें लगभग 70 किलोमीटर पहाड़ के किनार किनार से पैदल चल कर जाना होता था। दशरत मांझी एक बहोत गरीब परिवार से थे गरीबी के करने वह धनबाद के कोयले की खान में काम करने गए। कुछ साल तक काम करने के बाद वह अपने घर लौट आए और फाल्गुनी देवी नाम के लड़की से शादी कर ली।  


दोनों गरीब तो थे पर ख़ुशी से अपने दिन बिताने लगे। दशरत फाल्गुनी से बहोत प्यार करता था। वह उसके लिए उसकी जान से बढ़कर थी।  पर वक़्त को कुछ और मंजूर था।  और उनकी खुसियो को नजर लग गयी।  एक दिन लकड़ी काटते अपने पति के लिए खाना लेजाते वक्त्त फाल्गुनी का पैर पहाड़ के किनारे से फिसल गया और वह गिर गयी।  फाल्गुनी बहोत घायल हो गयी थी।  और  उसे जल्द ही इलाज की जरुरत थी।  पर गलहोत गांव से शहर हॉस्पिटल ले जाना इसमें बहोत समय लग जाता था। क्यों की उनके गांव और शहर के बिच एक विशाल पहाड़ था।  जिसके वजहसे उन्हें इतना समय लगता था।  और इलाज न मिलने के कारण कुछ ही घण्टो में फाल्गुनी ने दम तोड़ दिया। 

यह देख दशरत बहोत दुखी हुए। और उन्होंने ने संकल्प लिया  की जिस पहाड़ ने उनसे उनकी पत्नी छीन ली वह उसे काट कर बीचोबीच एक रास्ता बनाएंगे। जिससे किसी और अपनी जान न खोए और सभी लोगो की जिंदगी आसान बने। और उसके अगले दिन से वह छेनी और हतोड़ा लेकर लगे रहे।  वह अकेले ही दिन रात पहाड़ को तोड़ते रहे न दिन देखा न रात न धुप न बरसात  बस वह पहाड़ तोड़ते रहे। कई लोग उनका मजाक उड़ाते , उनपर हस्ते , उन्हें पागल कहते पर वह सिर्फ अपना काम करते। कहते है न जिस जिस पर यह जग हँसा है उसी ने इतिहास रचा है।  और दशरत  मांझी ने २२ सालो में 360 फुट लम्बी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट ऊँचे पहाड़ का सीना चिर दिया। 

अब गलहोत और वजीरगंज की दुरी सिर्फ 10 किलीमीटर रह गयी जो की पहले 60 किलोमीटर थी। स्कूल , अस्पताल , और बाकि सब सुविधा भी लोगो को सिर्फ आधे घंटे की दुरी पर मिल मिलने लगी। आज उस रस्ते को उस गांव के अलाव अजूबाजूके 60 गांव भी इस्तेमाल करते है। मांझी  का एक ही मन्त्र था अपने धुन में लगे रहे अपना काम करते रहे. आखिरकार 17 अगस्त 2007 दशरत मांझी की कैंसर की वजहसे दिल्ली के एम्स अस्पताल में मौत हो गयी।   उनकी इस उपलब्धि पर बिहार सरकार द्वारा पद्मश्री के लिए उनका नाम रखा गया।  आमिर खान के सत्यमेव जयते का पहला एपिसोड दशरत मांझी को समर्पित किया गया।  उनपर एक फिल्म भी बन चुकी है जिसमे नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने अहम् रोल निभाया है। 



जीत के खातीर बस एक जूनून चाहिए 
जिसमे उबाल हो ऐसा ही खून चाहिए 
ये आसमा भी आएगा जमीन पर ये दोस्त 
बस इरादों में जीत के गूंज चाहिए। 



           मांझी ने 360 फुट लम्बी 30 फुट चौड़ी और 25 फुट चौड़ा पहाड़ को काट  कर रास्ता बना कर दिखाया और पुरे गांव के लोगो का जीवन सरल बना दिया। 


                  दोस्तों मांझी से हमे बहोत प्रेरणा मिलती है, संकल्प में कितनी शक्ति होती है ये हमे मांझी से सीखना चाहिए। हम भी अपने जीवन में बहोत संकल्प करते है पर सरे ही संकल्प पुरे नहीं हो पते क्यू की हम हार  मान लेते है, हम में विश्वास की कमी होती है, हम डटे  नहीं रहते।  

यह पर मुझे आनंद महेश्वरी की Speech याद आ रही है

  ज़िन्दगी एक क्रिकेट मैच की तरह है वो हमारे  एक के बाद एक Ball फेंकती है, हम से पहला Ball Miss हुआ दूसरा Ball Miss हुआ पर कभी न कभी तो हम ६ का जरूर मारेंगे बस हमे speech पे डटे  रहना चाहिए।  

 

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